हुआ करता था हमारे पास,दोस्तों का बड़ा काफिला
जिसमे लगते थे ठहाके, और चलता मस्ती का रेला,
शुरूआत होती थी दिन की, दोस्तों की गालियो से,
और दिन कब कट जाता था,हर अनजान गलियो में,
किया जिनके संग पैदल से साइकिल तक का सफ़र,
वो घास के मैदान में घंटो बैठकर होती बाते हर प्रहर,
किसी को सुनना और किसी की भिड़ाना हर कदम,
सही कहा है की हर दोस्त जरुरी होता है,
क्योंकि व्ही आपके दिल का किरायेदार होता है,
कड़ी धूप में बेपरवाह घूमना वो दोस्तों के संग,
आज व्ही तपिश बुरी लगती है,
भोर में उठ के निकल जाना क्रिकेट की दुनिया में,
आज व्ही सुबह आलस लगती है,
चंद रूपए का उपहार लेना दोस्त का अच्छा लगता था
आज क्यों सब कुछ खालीपन लगता है
2 रुपये का समोसा कैंटीन पे जन्नत सा लगता था,
आज व्ही अकेले में, न खाने को दिल करता है
होली,दीवाली पे लगता था एक जमघट
पर आज व्ही सब फॉर्मेलिटी सा लगता है,
एक छोटी पार्टी के लिए वो पैसो का चन्दा करना,
आज है लाखो पर पैसे लेने वाला कोई नही होता
किसी की आँखों पे नमी को झट समज जाते थे,
आज व्ही नमी अपनी आँखों से नही हटा पाते,
जिंदगी के बढ़ते कदमो ने सब कुछ छीन लिया,
न रही वो मस्ती, न वो हुड़दंग
एक एक कर खत्म हुआ वो दोस्तों का सफ़र
सिर्फ रह गये मतलबी दुनिया और मतलबी लोग
पीछे छूट गया वो कही दोस्तों का लंबा काफिला
Ankur Bhardwaj