Saturday 22 May 2021

गुमसुम ज़िन्दगी

 वक्त,पल,समय क्यों थम सा गया है

जिंदगी जीना भी एक संघर्ष सा लगता है

 प्रकृति ने क्यों मुह मोड़ लिया है

महसूस यूँ बंद हवा और पंछी जैसे  होते है

रौद्र रूप जो अपने चरम पे है,वो कब थमेगा

बंद आशियाना ही एक घर और

धुन्ध में खो गया अपना कारवां सा लगता है 

पलकों पे यूँ नींद का आगोश समाया रहता है 

लहरों के जैसे उथल पुथल मची है

उम्मीद हर दिन हर पल सी लगी रहती है 

शांत ये सागर का तांडव हो जाये और हम खुली हवा में जी पाए।।


                                 अंकुर भारद्वाज


Wednesday 21 November 2018

कुछ नही_______


यूं अब दिल मे इश्क़ के सिवा कुछ नही
हर दिन में तेरी चाहत के सिवा कुछ नही
जहा तक याद की हद जाती है,
वहां तक सिर्फ तेरी सूरत नजर आती है
चाहा अब की तेरे रास्ते पे फूल सजा दू
या किसी दिन खुद फूल बनकर कदमबोशी कर लूं
तेरी महफ़िल से  जो उठु तो जाऊ कहा ये तो बता
अब मेरा काम तेरी इबादत के सिवा कुछ नही
गिले शिकवे में छिपी तेरी मासूमियत
जो तू नही फिर मेरी सख्शियत कुछ नही
में चाहू तो भी तुझे क्या दे सकता हु
तुझे देने के लिए ईश्वर रब से मागने के सिवा कुछ नही
तेरे जुदा होने का इल्म सोच नही सकता
दिल मे अरमा को छिपाने के सिवाय कुछ नही
महक रही है जिंदगी मेरी सिर्फ तेरे साथ से
वरना गुजरे थे हम भी कभी बुरे सपने से
थामें रखना बस मेरा हाथ
मेरी मंजिल मुझे मिल ही जाएगी
गर संग जो टूटा तो फिर ज़िन्दगी बिखरने के सिवा कुछ नही
में तो हर दर्द तुझे बया कर सकता हु
लेकिन कभी जलते दिए से पूछो
उसकी तकलीफ किसी को समझ कुछ नही
यू हँसता हँसाता रहूंगा तुझे
बस संग रहना तू मेरे
बाकी अब ज़िन्दगी में तेरे इश्क़ के सिवाय कुछ नही

Thursday 15 November 2018

आज फिर क्यो_____

कशमकश में पड़े है जिंदगी के हर पल आज क्यों
बस ढूंढ रहे है वो खुशी के पल जो जुदा है क्यों
जीना हर किसी को कहा आता है आज
सिर्फ दुखी  हर लम्हा हर इंसा है क्यों
नदी के इस छोर खुशी सिमट आती है
और छोर दूसरी फिर काले बादल सी अंध आती है क्यों
 पल उसके साये में कुछ जी लिए हमने सुकून से
आखिरकार लम्हा गुजर के आ गई जुदाई क्यों
इंतजार रहता है हर अनजान आहट पे उसकी
फिर इंतहा सब्र सालो तक गुजर गया क्यों
रात होते  ये पलके अनजान सफर पे ले जो जाती है
फिर होते ही सुबह खुलती ये आंखे कहर ढाती है क्यों
किसी अपने का संग हर पल संग चाहता है दिल
फिर उसकी हल्की सी आह,सीना चीर जाती है क्यों
बैठे बस में सुबह की ठंडक बड़ी सुहानी है लगती
पर खुली आँखों से भी बहती पवन को देख नही पाता हूं क्यों
चाहता हु दिल से कह दु उसे सब हाले बया
लेकिन फिर कुछ सोच रुक जाता हूं क्यों
काश उसकी झलक हर आईने में दिखे मुझे
पर हर टूटे हिस्से में अपने को देख पाता हूं क्यों
मन मे भाव आते है ,दिल में पैठ कर जाते है बहुत
फिर स्याही में डुबोये ही शब्द खो जाते है क्यों
कभी सोचता हूं लिख दिए इतने अरमान आसमा पे
पर बारिश होते ही सब धुल जाते है क्यों
कशमकश थी, है और रहेगी ज़िन्दगी भर
बस फिर लिखते लिखते शब्द खत्म हो गए क्यों

Thanks

Thursday 11 October 2018

हर हर महादेव

आप ही ब्रह्म,आप ही ज्ञान,आप ही ब्रहांड है,
हर हर महादेव की घोष सिर्फ जिसकी पुकार है,
क्योंकि शिव ही शव, और शव ही शिव है
दिन हर मेरा अघोर से जुड़ा और अंत ही आरम्भ है,
ज्योतिर्लिंग जिसके जाग्रत वो ही मेरे शिव का चमत्कार है,
मानसरोवर जैसा पवित्र  ॐ पर्वत जिनके पास है,
ऊँचा हिमालय से कद जिसका,भोले का वही निवास है,
अवंतिका जिसकी नगरी,भूत प्रेत जिनके कदमो की धूल है,वो कालो के काल मेरे बाबा महाकाल है,
जिस काशी का अस्तित्व जय भोले के उदघोष् से है
वहा हर कड़ कड़ में बसे बाबा विश्वनाथ है
एकांत पहाड़ो की गोद में जो बसे वो मेरे जागेश्वर,मुक्तेश्वर महादेव है
पिए जो अमृत उन्हें हर कोई देव कहता है,लेकिन हर कोई
विष पीने वाले को सिर्फ देवो के देव महादेव कहता है
ना पूछो मुझसे मेरी पहचान, मैं तो भस्मधारी हूँ, भस्म से होता जिनका श्रृंगार मैं उस महाकाल का पुजारी हूँ ।
ये मोह माया की दुनिया से मैं दूर रहता हू,
सिर्फ मेरे महादेव की भक्ति के नशे में चूर रहता हूँ
हु मैं अपने भोले की भक्ति में चूर
गौर से देखो हर तरफ तुम पाओगे महादेव का ही नूर
क्योंकि शिव ही शव और शव ही शिव है

Tuesday 25 September 2018

अँधेरी रात___


यूँ तो ख़ामोशी में एक इंतहा सुकून मिलता है
महसूस करोगे तो एक अनजान सा कोरा सफ़र मिलता है
जिस स्याह काले अँधेरे में हर किसी का साया दिखता है
पर शमसान में अघोरी को हर रात जीवन नया मिलता हैं
उजाले की तम्मना लिए हर शक्श इंतज़ार करता है
पर सूनसान काली रात में वो नयी शक्ति से मिलता है
डरते वो इस अँधेरी रात से,पर हमें गहरा सुकून मिलता है
हर चंद अँधेरे के बाद एक नया सूरज निकलता है
जीवन का प्रतिदिन सार हमे उजाले में मिलता है
लेकिन मन शांत,गहराई,व शक्त घुप्प अँधेरे में मिलता है
महसूस करोगे गर तो अपने आप को समज पाओगे
यही त्रियामा है जिसमे खुद को असहज पाओगे
धन दौलत ऐश्वर्य है उजाले की देन
पर इस विभावरी का संग क्या दे पाओगे
भाग दौड़ से थककर कभी सोचना इस रात के बारे में
पूरे दिन छिपकर,आती है क्यों सुलाने ये समज पाओगे

Ankur Bhardwaj

Sunday 23 September 2018

वक्त दोबारा न लौट पायेगा___


ये वक्त ही है जो कोई रोक नही पायेगा
ये एक बार गया तो लौट के न दोबारा आएगा
बचपन जीते ,ये वक्त कब निकल गया
स्कूल का हर समा भी कब गुजर गया
पीछे मूढ़  के देखने का मन करेगा आज
लेकिन वो समय था जो आज दूर हो गया
समय कहता है हमसे, की जी लो जिंदगी का हर पल
लेकिन हम ही उसकी नही करते कदर
भाग रहा है हर इंसान ज़िन्दगी की रेस  में
लेकिन अपने लिए सुकून नही कमा पायेगा
 चलकर आगे जब लौट के आने का दिल करेगा
देर हो चुकी होगी बहुत,और कारवा बढ़ गया होगा
ज़िन्दगी के संग वक्त पे चलना सीख लो
प्रकृति के संग छेड़छाड़ बंद करो ,
और समय की अहमियत सीख लो
निकालो समय अपने लिए और कुदरत के लिए
निहार लो इसकी खूबसूरती,फिर ये मौका न मिलेगा
तू पैसे कमाने से शांति नही पा पायेगा
लेकिन शांति कमाने से जिंदगी की अहमियत जान पायेगा
हर दर्द हर गिले शिकवा सिर्फ समय से जुड़े है
देते चलो ख़ुशी सबको,करते रहो सेवा सबकी
शायद अंत में किसी को तुम्हारा यही याद रह जायेगा
ये काल चक्र है जो बढ़ रहा है अपनी चाल से
जो रह गए पीछे तुम,ज़िन्दगी में अफ़सोस रह जायेगा
क्योंकि ये वक्त है,इसे कोई न रोक पायेगा

Ankur Bhardwaj





Thursday 13 September 2018

दोस्तों का काफिला___


हुआ करता था हमारे पास,दोस्तों का बड़ा काफिला
जिसमे लगते थे ठहाके, और चलता मस्ती का रेला,
शुरूआत होती थी दिन की, दोस्तों की गालियो से,
और दिन कब कट जाता था,हर अनजान गलियो में,
किया जिनके संग पैदल से साइकिल तक का सफ़र,
वो घास के मैदान में घंटो बैठकर होती बाते हर प्रहर,
किसी को सुनना और किसी की भिड़ाना हर कदम,
सही कहा है की हर दोस्त जरुरी होता है,
क्योंकि व्ही आपके दिल का किरायेदार होता है,
कड़ी धूप में बेपरवाह घूमना वो दोस्तों के संग,
आज व्ही तपिश बुरी लगती है,
भोर में उठ के निकल जाना क्रिकेट की दुनिया में,
आज व्ही सुबह आलस लगती है,
चंद रूपए का उपहार लेना दोस्त का अच्छा लगता था
आज क्यों सब कुछ खालीपन  लगता है
2 रुपये का समोसा कैंटीन पे जन्नत सा लगता था,
आज व्ही अकेले में, न खाने को दिल करता है
होली,दीवाली पे लगता था एक जमघट
पर आज व्ही सब फॉर्मेलिटी सा लगता है,
एक छोटी पार्टी के लिए वो पैसो का चन्दा करना,
आज है लाखो पर पैसे लेने वाला कोई नही होता
किसी की आँखों पे नमी को झट समज जाते थे,
आज व्ही नमी अपनी आँखों से नही हटा पाते,

जिंदगी के बढ़ते कदमो ने सब कुछ छीन लिया,
न रही वो मस्ती, न वो हुड़दंग
एक एक कर खत्म हुआ वो दोस्तों का सफ़र
सिर्फ रह गये मतलबी दुनिया और मतलबी लोग
पीछे छूट गया वो कही दोस्तों का लंबा काफिला

Ankur Bhardwaj